Corporate Law Notes in Hindi pdf notes Welcome to dreamlife24.com. we are presented to you bcom 2nd year corporate law notes in hindi for commerce students in this article you find all company law notes and best way how to prepare your exam and you communication skills. This course is specially for Bcom. Please share this article to your best friend and other for helps to other person….and when leave his page comment pls Meaning and Kinds of companyIncorporation of Company and PromotionManaging Director and Whole time Director (memorandum of association)Company’s Meeting and ResolutionWinding up Of CompanyThe Indian Factories Act 1948Industrial Disputes Act 1947Workmen’s Compensation, Act 1923
Corporate Law
Vacation of Directors
Vacation of Directors संचालकों का पदत्याग या स्थान रिक्त होना धारा 168 के अनुसार एक संचालक का पद उसकी नियुक्ति के बाद निम्नलिखित दशाओं में रिक्त हो जाता है- (1) योग्यता अंश न लेना-यदि एक संचालक नियुक्ति के बाद निर्धारित 2 माह की अवधि के भीतर योग्यता अंश नहीं ले या अन्य किसी भी समय योग्यता अंशों पर स्वामित्व को छोड़ दे या निर्धारित सीमा से कम योग्यता अंशों का वह स्वामी रह जाये (2) अस्वस्थ मस्तिष्क का हो जाना-यदि उसे किसी सक्षम न्यायालय द्वारा अस्वस्थ मस्तिष्क का पाया जाये या पागल घोषित कर दिया जाये। (3) दिवालियेपन के लिए आवेदन-पत्र-यदि उसने दिवालिया होने के लिए न्यायालय में आवेदन-पत्र प्रस्तुत कर दिया हो। (4) दिवालिया घोषित किया जाना-यदि उसे न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित कर दिया गया हो।
Alteration in the Memorandum of Association
Alteration in the Memorandum of Association पार्षद सीमा नियम में परिवर्तन पार्षद सीमानियम कम्पनी का महत्त्वपूर्ण प्रलेख होता है अतः इसे आसानी से बदला नहीं किया जा सकता। इनमें परिवर्तन करने के लिये कई औपचारिकताओं एवं नियमों का पालन करना पड़ता है। इसके विभिन्न वाक्यों में परिवर्तन की विधियाँ इस प्रकार हैं - (1) नाम वाक्य में परिवर्तन (Alteration of Name Clause) - कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 13 (1) के अनुसार, कोई भी कम्पनी विशेष प्रस्ताव पारित करके तथा केन्द्रीय सरकार की अनुमति लेकर अपना नाम परिवर्तित कर सकती है। ऐसे परिवर्तन की सूचना विशेष प्रस्ताव की प्रतिलिपि के साथ कम्पनी रजिस्ट्रार को परिवर्तन के 15 दिन के अन्दर देनी चाहिये। रजिस्टार यह सूचना मिलने पर अपने रजिस्टर में कम्पनी का नया नाम
Powers of Directors
Powers of Directors संचालकों के अधिकार संचालकों के अधिकारों को दो भागों में बाँटा जा सकता है— (1) सामान्य अधिकार, (2) विशेष अधिकार । इनका विस्तृत विवेचन इस प्रकार है - (1) सामान्य अधिकार (General Powers)-कम्पनी अधिनियम की धारा 291 के अनुसार, कम्पनी के संचालक उन सब अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं तथा वे सब काम कर सकते हैं जो एक कम्पनी कर सकती है। संचालकों को अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय इस सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम,पार्षद सीमानियम एवं अन्तर्नियमों द्वारा लगाए गए प्रतिवन्धों को ध्यान में रखना चाहिए। (2) विशेष अधिकार (Special Powers)-निम्नलिखित अधिकारों का प्रयोग संचालकों द्वारा संचालकों की सभाओं में प्रस्ताव पारित करने के बाद ही किया जा सकता है – (i) अचानक रिक्त स्थानों की पूर्ति; (ii) अंशधारियों से याचनाएँ माँगने का
Meaning of Articles of association meaning in hindi
Meaning of Articles of association meaning in hindi पार्षद अन्तनियम पार्षद अन्तनियम से आशय कम्पनी के उदेयं के कार कलेव का नत्र प्रबन्ध व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिये बनाये गये नियम व नियम है। कमानी की सम्पूर्ण आन्तरिक प्रवन्ध वस्या पार्षद अनन्या के अनुसार हरे र अन्तनियम कमनी का दूसरा महत्वपूर्ण लेख है इसे करने के समय के समय दिया के पास प्रस्तुत किया जाता है। पार्षद अन्तर्नियम सीमानिया का सहायक प्रलेख हेत हे प्रत्येक करने के लिरको तैयार करना आवश्यक नहीं होता, लेकिन जो कानियां इसे नई कनक भय कम अधिनियम 1956 में दी गई अनुसूची (TableA) को अपना है। कम्पनी अधिनियम 2013, की धारा 2 (5) के अनुसार- उर्निया में अब ऐसे अन्तर्नियम से है, जो पिछले कम्पनी
Relationship of Promoter with the Company
Relationship of Promoter with the Company प्रवर्तक का कम्पनी के साथ सम्बन्ध एक प्रवर्तक का कम्पनी के साथ निम्न प्रकार का सम्बन्ध होता है - (1) विश्वासाश्रित सम्बन्ध (Fiduciary Relation) कम्पनी के साथ प्रवर्तक । विश्वासाश्रित सम्बन्ध होते हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि कम्पनी के प्रवर्तकों कम्पनी के साथ तथा उन व्यक्तियों के साथ, जिन्हें अंशधारी बनाने के लिए आकर्षित किया है है, विश्वासाश्रित सम्बन्ध होते हैं । कम्पनी और प्रवर्तक के बीच यह सम्बन्ध तब तक रहता है तक कम्पनी का निर्माण न हो जाये। (2) निर्माण बाद कार्यों के लिए उत्तरदायी न होना (Not to be Responsible for after Formation Functions)-प्रवर्तक कम्पनी के निर्माण, से सम्बन्धित समस्त कार्य सम्पन्न करता है और अनुबन्ध करता है लेकिन प्रवर्तक
Meaning of Incorporation of Company
Meaning of Incorporation of Company कम्पनी के समामेलन का अर्थ भारतीय कम्पनी अधिनियम के अनुसार, कम्पनी के समामेलन हेतु उस राज्य के रजिस्ट्रार (जहाँ पर कम्पनी का रजिस्टर्ड कार्यालय होगा) के पास (i) पार्षद सीमानियम, (ii) पार्षद अन्तर्नियम, (iii) संचालकों की संचालक बनाने की लिखित सहमति, (iv) संचालकों की योग्यता अंश लेने की लिखित सहमति, (v) कम्पनी के रजिस्टर्ड कार्यालय की सूचना, (vi) | वैधानिक घोषणा, तथा (vii) निश्चित शुल्क सहित सभी उपर्युक्त प्रपत्र जमा करने होते हैं। रजिस्ट्रार अपनी सन्तुष्टि के बाद उस कम्पनी का नाम अपने रजिस्टर में लिख लेता है और कम्पनी को इस आशय का एक प्रमाण-पत्र दे देता है कि कम्पनी का रजिस्ट्रेशन कर लिया गया है। इस प्रकार से कम्पनी का समामेलन हो जाता है। समामेलन
Legal Position of Promoter
(Legal Position of Promoter) प्रवर्तक की वैधानिक स्थिति प्रवर्तक कम्पनी का एजेन्ट नहीं हो सकता क्योंकि उसके प्रवर्तक बने रहने तक कम्पनी अस्तित्व में नहीं होती जबकि बिना स्वामी के कोई एजेन्ट नहीं होता। अतः प्रवर्तक कम्पनी का कम्पनी का प्रवर्तन एवं समामेलन (पंजीयन)/ 23 एजेन्ट नहीं है। प्रवर्तक कम्पनी का ट्रस्टी नहीं हो सकता क्योंकि पहले से कम्पनी को कोई अस्तित्व ही नहीं होता। इसके फलस्वरूप भी प्रवर्तक का कम्पनी के साथ विश्वासाश्रित सम्बन्ध होता है। लार्ड लिण्डले (Lord Lindley) ने प्रवर्तकों की वैधानिक स्थिति के सम्बन्ध में निम्न पाँच बातें बतायी हैं- (1) विश्वासाश्रित सम्बन्ध-प्रवर्तक का कम्पनी के साथ और उन व्यक्तियों के साथ जिन्हें वह कम्पनी का अंशधारी बनाने के लिये प्रेरित करता है, विश्वासाश्रित सम्बन्ध होता है। bcom 2nd year incorporation
Meaning of Company Promotor Notes
Meaning of Company Promotor Notes कम्पनी प्रवर्तक का अर्थ एवं परिभाषा कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(69) के अनुसार, वह व्यक्ति जिसके मस्तिष्क में कम्पनी स्थापित करने का विचार उत्पन्न होता है और जो कम्पनी निर्माण से पूर्व उसकी समस्त क्रियाओं को अपनी जिम्मेदारी पर करता है, उसे प्रवर्तक कहते हैं । कम्पनी अधिनियम में प्रवर्तक शब्द की कोई परिभाषा नहीं दी गई हैं, किन्तु कम्पनी निर्माण में इसके द्वारा किये गये कार्य के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रवर्तक का आशय ऐसे व्यक्ति से है जो एक निश्चित योग्यतानुसार कार्य करके कम्पनी का निर्माण एवं संचालन करता है । विभिन्न विद्वानों ने इसकी परिभाषा इस प्रकार दी है- कॉक बर्न-"प्रवर्तक वह है जो किसी निश्चित उद्देश्यों के लिये कम्पनी का
Corporate Veil meaning
समामेलन का पर्दा (Corporate Veil) समामेलन का पर्दा (Corporate Veil) नियम कम्पनी की स्वतन्त्र वैधानिक सत्ता के सिद्धान्त पर आधारित है। इसके अनुसार कम्पनी एवं सदस्यों के बीच एक पर्दा या आवरण होता है। जो कम्पनी को अपने सदस्यों से अलग वैधानिक अस्तित्व प्रदान करता है और कम्पनी की देनदारियों का दायित्व कम्पनी पर होता है और सदस्यों पर नहीं। कभी-कभी पर्दे को बांधकर कम्पनी के नाम से पर्दे में रहकर काम कर रहे व्यक्तियों की सच्चाई जानना आवश्यक हो जाता है। अतः उस समय न्यायालय कम्पनी की पृथक् वैधानिक सत्ता नहीं मानते। इस परिवर्तन को कम्पनी या निगम के आवरण को बेधन करना कहते हैं। कम्पनी/निगम आवरण सिद्धान्त के अपवाद (Exceptions of the Principle of Company Corporate veil) (1) कपट या अनुचित व्यवहार की